प्रथम विश्व युद्ध का अनोखा दिन जब हथियार डाल कर…



पहले विश्व युद्ध का नाम सुनकर दिमाग में आपके गोला-बारूद, चीखें और खून के दृश्य दिखाई पड़ते होंगे. अमूमन आपको इससे जुड़ी हुई दर्दनाक कहानियां ही सुनने को मिली होंगी. पर क्या आप जानते हैं कि इस युद्ध के दौरान एक दिन ऐसा भी आया था, जब सभी ने अपने हथियार डाल दिये थे? यहीं नहीं दुश्मन देशों के सैनिकों ने एक-दूसरे को गले भी लगाया था. तो आईये इस खास दिन से जुड़ी हुई कहानी को जरा नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं:

दुनिया भर में बह रही थी खून की नदियां!

प्रथम विश्व युद्ध की जंग अपने चरम पर थी. पूरी दुनिया के देश इसमें अपनी ताकत झोंकने में लगे थे. कई सारे सैनिकों को जर्मन सैनिकों से लड़ने के लिए भेजा जा रहा था. हर तरफ बस गोलियों की आवाज और खून बह रहा था. यह पहली ऐसी जंग थी, जिसमें सेना में आम लोगों को भी भर्ती किया गया था. कोई भी देश झुकने को तैयार नहीं था. इस कारण यह जंग और भी घातक बन गई थी. औरतें विधवा हो रही थीं और बच्चों के सिर से पिता का साया हट रहा था. सारी दुनिया आग में जलती हुई नजर आ रही थी. घरों में बैठे हुए लोग तक सुरक्षित नहीं थे. 1914 का वह साल तो इस ख़ूनी जंग की महज एक शुरुआत भर था. किसी को नहीं पता था कि यह जंग कब खत्म होगी.
इस जंग का सिर्फ एक ही उद्देश्य था जीत! दुश्मन को हराने के लिए लोग तेजी से बढ़ रहे थे. समय बीतता गया. जुलाई में शुरु हुई जंग दिसम्बर तक पहुंच गई थी. दिसम्बर एक ऐसा महीना था, जो ईसाईयों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. इस महीने में उनका सबसे खास त्यौहार ‘क्रिसमस’ आने वाला था. यह इकलौता ऐसा त्यौहार था, जिसे जंग में शामिल सभी देश बड़ी धूम-धाम से मनाते आये थे. चूंकि, इस बार सभी जंग लड़ रहे थे, इसलिए माना जा रहा था कि यह त्योहार इस बार नहीं मनाया जायेगा.  इससे सैनिक उदास थे. उनकी आंखों में परिवार के साथ बिताये गये पिछले क्रिसमस की तस्वीरें तैर रही थीं.

यह जर्मन सैनिकों की साजिश थी या…

जल्द क्रिसमस आ गया. सभी की आंखे नम थी और जुबान पर सवाल था कि यह जंग कब ख़त्म होगी? परिवार साथ नहीं था. ऐसे में जंग के मैदान के साथी ही परिवार बन चुके थे. आज का माहौल जंग के दूसरे दिनों की तुलना में एकदम अलग था. आज सैनिकों को जर्मन की गोलियों की आवाजें सुनाई नहीं दे रही थी. सबके चेहरों पर खौफ था कि आखिर जर्मन सैनिक किस फ़िराक में हैं. सूरज ढलने लगा था और अभी तक जर्मन की तरफ से किसी भी तरह की हलचल नहीं हुई थी. सब कन्फयूज थे कि आखिर हुआ क्या है, लेकिन खामोश रहने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था.
असल में उन्हें डर था कि आगे बढ़ने की कोशिश करने पर जर्मन सैनिक उनपर हमला न बोल दें. उन सब की बेहतरी इसी में थी कि वह चुपचाप मोर्चे पर खड़े रहकर दुश्मन की हरकत का इंतजार करें. जर्मन की साजिश समझकर ही ब्रिटिश सैनिक एक कदम भी आगे नहीं बढे़. जंग का नियम है कि दुश्मन पर कभी भरोसा नहीं किया जाता.
तेजी से वक्त बीता तो चांद ने अंधेरे की चादर ओढ़ ली. हर तरफ बस सन्नाटा और अंधेरा था. अचानक जर्मन सेना की तरफ से रोशनी आती दिखाई दी. धीरे-धीरे यह रोशनी बढ़ती जा रही थी. ब्रिटिश सैनिक इसे देखकर भौचक्के थे. दिनभर जर्मन ने अपनी मौजूदगी का कोई सबूत नहीं दिया था. अब रात में उनके पास से इतनी रोशनी का आना खतरनाक हो सकता था.
कुछ देर बाद देखा गया कि जर्मन अपने पूरे पोस्ट पर मोमबत्तियां लगा रहे थे. ब्रिटिश यह देख ही रहे थे कि तभी कुछ जर्मन सैनिक ब्रिटिश भाषा में क्रिसमस के गीत गाते हुए उनके पास आने लगे. जैसे ही ब्रिटिश जवानों ने जर्मन को अपनी ओर आते देखा वह सब अपनी-अपनी जगह तैनात हो गए. वह पूरी तरह से तैयार थे, ताकि जर्मन के हर हमले का मुंहतोड़ जवाब दे सकें. जर्मन सैनिकों ने अपना गाना बंद नहीं किया और आगे बढ़ते रहे. जर्मन को करीब आते देख ब्रिटिश गोलियां चलाने ही वाले थे कि उन्होंने देखा कि जर्मन सैनिकों के हाथ में बंदूके नहीं है. यह देखकर ब्रिटिश सैनिकों ने अपने हथियार नीचे कर दिए. उन्हें दुश्मन पर अभी भी शक था, लेकिन उन्होंने उन्हें अपने पास आने दिया. जर्मन सैनिक अभी भी ब्रिटिश भाषा में क्रिसमस का गाना गाते रहे.

और एक दिन के लिए इंसानियत जीत गई!

ब्रिटिश सैनिक कुछ कहते इससे पहले जर्मन सैनिक ने कहा आज क्रिसमस है. हमें आज नहीं लड़ना चाहिए. आईये मिलकर क्रिसमस का लुत्फ उठाया जाए. ब्रिटिश सैनिकों को समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर यह क्या हो रहा है? इतने में बाकी जर्मन सैनिक क्रिसमस का पेड़ ‘नो मैन लैंड’ को लेकर आगे बढ़े. अब ब्रिटिश लोगों को विश्वास हो गया था कि जर्मन सच कह रहे हैं.
अब दोनों तरफ की सेना क्रिसमस मनाना चाहती थी. लगभग एक लाख ब्रिटिश और जर्मन सैनिकों ने अपने हथियार डाल दिए. दोनों देशों के सैनिकोंं ने अपने-अपने स्थान को छोड़ दिया. वे ‘नो मैन लैंड’ की ओर बढ़ने लगे. दोनों तरफ के लोगों के पास कोई ख़ास चीज नहीं थी तोहफे के रूप में देने के लिए. उनके पास एक दूसरे को देने के लिए प्यार जरुर था. सब जंग शुरू होने के बाद पहली बार इतने खुश दिखाई पड़ रहे थे. जैसे-जैसे रात का अंधेरा और गहरा होता गया, सारे सैनिक एक जगह इकट्ठा होकर एक-दूजे को गले लगा कर क्रिसमस की बधाइयां दे रहे थे. माना जाता है कि उन सबने मिलकर कई खेल भी खेले.
वह सब जानते थे कि जैसी ही यह रात ढ़लेगी उन्हें फिर से खुद को जंग में झोंकना पड़ेगा. उन्होंने पूरी रात क्रिसमस का लुत्फ इस तरह लिया जैसे मानो यह उनके जीवन की आखिरी क्रिसमस हो. यह एक ऐसा दिन था जब विश्व युद्ध में  एक दिन के लिए ही सही पर इंसानियत जीत गई.

यह विश्व युद्ध पूरी दुनिया के लिए बहुत ही दर्दनाक रहा. इसमें कई लाख सैनिकों ने अपने देश के लिए अपने प्राण गवा दिए थे. फिर भी क्रिसमस पर जिस तरह से दुश्मन देशों ने एक दूसरे को गले लगाया वह इस बात को प्रमाणित करती है कि दुनिया में हैवानियत चाहे कितनी भी फैली हो, लेकिन इंसानियत को वह ख़त्म नहीं कर सकती.

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