1965 के ‘भारतीय रणबांकुरे’ जिनको याद कर थर्रा जाते हैं दुश्मन !

 1947 में पाकिस्तान भारत द्वारा दी गयी हार से कोई सबक लेता नज़र नहीं आया. सितम्बर 1965 में एक बार फिर से भारत पर हमला कर पाक ने पुराने जख्मों को हरा कर दिया था. इससे पहले चीन और भारत का युद्ध 1962 में हो चुका था और इसी ग़लतफ़हमी में पाकिस्तान भारत को कमजोर समझ बैठा. पाकिस्तान ने इस बार हमले के लिए जो जगह चुनी उसका नाम था फाजिल्का. फाजिल्का पर पाकिस्तान ने तीनों ओर से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई, जिसमें ढ़ेरों लोग मारे गए. चूंकि यह हमला अचानक हुआ था, इसलिए हमारी सेना को मोर्चा संभालने में थोड़ी देरी अवश्य हुई, लेकिन जब भारत के जाबांजों ने मोर्चा संभाला तो फिर लाहौर तक घुसकर दुश्मनों को मारा. इस युद्ध में भारत के जाबांंजों ने जिस शौर्य का परिचय दिया, उसके किस्सों को आज भी याद किया जाता है. आइये याद करें, भारत के ऐसे ही कुछ रणबांकुरों को जिनके नाम लेने भर से दुश्मन थर्रा जाते हैं.

वीर अब्दुल हमीद

‘पलटन में उनकी बहुत इज्जत होती है जिनके पास कोई चक्र होता है, देखना झुन्नन हम जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र जरूर लेकर लौटेंगे’
अपने भाई को कहे अब्दुल हमीद के ये शब्द इस बात को दर्शाते हैं कि वह तन से ही नहीं बल्कि मन से भी योद्धा थे. यही कारण था कि जब 1965 के युद्ध में पाकिस्तान ने अपने नापाक कदमों को अमृतसर की ओर बढ़ाया तो अब्दुल हमीद ने उनको खत्म करने का मन बना डाला.
हमीद अपने प्राणों की चिंता न करते हुए अपनी तोप युक्त जीप के साथ दुश्मन के टैंकों की ओर बढ़ चले और दुश्मन के तीन टैंक तबाह कर डाले. हमीद की वीरता से पाक सैनिक आश्चर्य में थे. वह जान चुके थे कि आगे बढ़ने के लिए उन्हें हमीद को खत्म करना पड़ेगा…
इसलिए उन्होंने अपने टैकों का मुंह हमीद की तरफ करके गोलाबारी शुरु कर दी. इसके बावजूद हमीद उनके टैंकों को खत्म करने का प्रयत्न करते रहे और अंततः शहीद हो गये. हमीद की शहादत से भारतीय सेना में ऊर्जा का संचार हुआ और वह दुश्मन को खदेड़ने में कामयाब रही. हमीद को उनकी इस वीरता के लिए मरणोपरांत भारत सरकार ने सर्वश्रेष्ठ बहादुरी पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया.

Heroes of India-Pakistan war 1965, Abdul Hamid’s Jeep 

मेजर भूपेंदर सिंह

मेजर भूपेंदर सिंह ने फ़िलौरा की लड़ाई में जिस तरह से अपनी बहादुरी का परिचय दिया था, उसकी जितनी चर्चा की जाए वह कम होगी. उन्होंने युद्ध के दौरान पाकिस्तान के उन टैंकों को नष्ट किया, जो सबसे ज्यादा भारतीय सेना को परेशान कर रहे थे. भूपेंदर जिस तरह से टैंकों को खत्म करते जा रहे थे, उससे पाक सेना के अधिकारियों को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें, इसलिए उन्होंने
कोबरा मिसाइल से भूपेंदर सिंह पर हमला कर दिया, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गए. कहा जाता कि उस समय के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जब उन्हें देखने पहुंचे, तो वह रो पड़े थे, क्योंकि वह अपनी गंभीर चोटों के कारण उन्हें सेल्यूट नहीं कर पा रहे थे.
देश का दुर्भाग्य था कि मेजर भूपेंदर को बचाया नहीं जा सका. उनके चले जाने के बाद उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया था.

हवलदार जस्सा सिंह

हवलदार जस्सा सिंह जिन्हें भारत-पाक युद्ध का गैलेंट हीरो कहा जाता है. उन्होंने 9 सितंबर 1965 को फाजिल्का के गांव चाननवाला के निकट मुकाबला करते हुए कई पाक दुश्मनों को मार गिराया था. उनके बारे में कहा जाता है कि वह लड़ते-लड़ते बहुत जोश में आ जाते थे. युद्ध के दौरान तो एक बार वह इतना जोश में आ गए थे कि पाकिस्तानी बंकर में जा पहुंचे थे. और
जब दुश्मन का मुकाबला करते हुए उनकी बंदूक में गोलियां खत्म हो गईं, तो उन्होंने नजदीक आ रहे दुश्मनों को बंदूक की बट से मारना शुरू कर दिया था. इस हाथापाई में घायल होने के बावजूद वह 7 दुश्मनों को मार गिराने में कामयाब रहे थे.
दुश्मन उन पर हावी होता इससे पहले उनके साथी उन तक पहुंच गए थे औऱ उन्होंने जस्सा सिंह को घायल अवस्था में संभाल लिया था. बाद में युद्ध के बाद उन्हें इस बहादुरी के लिए वीर चक्र से नवाजा गया.

Heroes of India-Pakistan war 1965, Jassa Singh 

मेजर जनरल सलीम क्लेब

मेजर जनरल सलीम क्लेब 1965 के भारत पाक युद्ध का एक बड़ा नाम थे. उन्होंने न सिर्फ़ अपने साथियों को उत्साहित रखा, बल्कि जंग के मैदान में अपने पराक्रम को प्रदर्शित करते हुए पाकिस्तानी सेना के 15 टैंकों को नष्ट करने में कामयाब रहे. इसके साथ ही उन्होंने दुश्मन के 9 टैंकों पर भारत को कब्जा दिया. जिसके लिए उन्हें युद्ध के समय दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 2015 में शारीरिक अस्वस्थता के कारण उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था. देश ने मेजर जनरल सलीम क्लेब को लेफ्टिनेंट जनरल बीएस सच्चर और अन्य सैन्य अधिकारियों की मौजूदगी में सम्मान के साथ आखिरी विदाई दी थी.

लेफ्टीनेंट कर्नल एबी तारापोर

1965 में युद्ध के दौरान एक जगह थी, फिल्लौरी. माना जा रहा था कि अगर भारतीय सेना इस जगह पर अपना कब्जा करने में कामयाब हो जाए तो यह एक बड़ी विजय होगी, इसलिए इस जगह पर अपना कब्जा करने के लिए सेना के अधिकारियों ने पूना हार्स रेजीमेंट के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल एबी तारापोर को भेजा. उनसे कहा गया कि किसी भी कीमत पर हमें इस क्षेत्र पर अपना कब्जा चाहिए.
तारापोर ने देर न करते हुए अपनी टुकड़ी के साथ जा पहुंचे दुश्मन के सामने, जहां उनका सामना हुआ पाकिस्तान को दिए गए अमेरिकन पैटन टैंक से, जिन्हें सबसे मजबूत और खतरनाक बताया जाता था. इसके बावजूद पैटन टैंक से सीधी लड़ाई में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को चारों खाने चित्त कर दिया.
लेफ्टिनेंट कर्नल एबी ताराबोर के नेतृत्व में गोला दागने वालों ने इतने सटीक लक्ष्य भेदे कि पाकिस्तानी सेना के 65 पैटन टैंक बर्बाद हो गए. तारापोर इस जंग को आखिरी मोड़ पर पहुंचाना चाहते थे. इसी कोशिश में उन्होंने 16 सितंबर को अपने प्राण वतन के नाम कर दिए. जिसके लिए बाद में उन्हें परमवीर चक्र दिया गया.

Heroes of India Pakistan war 1965, Tarapore 

लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह

हनुत सिंह को वीरता का दूसरा नाम कहा जाए तो गलत नहीं होगा. उन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में दुश्मन को अपना लोहा मनवाया. युद्ध के दौरान जब उन्हें सेना की कमान दी गई तो उन्होंने पूरी समझदारी से दुश्मन की हर चाल पर पानी फेर दिया था. रणक्षेत्र में वीरता के जौहर दिखाते हुए
हनुमंत सिंह ने पाक के 60 टैंक नष्ट करके दुश्मन को बता दिया था कि वो सावधान रहे, भारतीय सेना उनको खत्म करने के लिए आगे बढ़ रही है. हनुत सिंह अपने हर मिशन में सफल होते हुए आगे बढ़ते रहे. 1965 की तरह वह भारत-पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध का भी हिस्सा रहे.
जहां उन्होंने सेना की बागडोर संभालते हुए पाक सैनिकों को धूल चटाई थी. हनुत सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है.

रंजीत सिंह दयाल

रंजीत सिंह दयाल पंजाब रेजीमेंट से आते थे. उन्होंने 1965 के युद्ध में उरी सेक्टर से दुश्मन को खदेड़ने का काम किया था. युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने उरी की हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर लिया था, जोकि भारत के लिए घातक था. ऐसे में भारत का इस क्षेत्र पर कब्जा जरुरी हो गया था, क्योंकि यह एक क्षेत्र ऐसा था, जहां पर अगर भारतीय सेना का कब्जा हो जाता तो वह पाक के सिपाहियों का भारत में घुसना नामुमकिन हो जाता. रंजीत सिंह इस बात को समझते थे, इसलिए उन्होंने प्राथमिकता के साथ इस पर कब्जे की योजना का अंजाम दिया. उन्हें महावीर चक्र जैसे बड़े सम्मान से सम्मानित किया गया था. युद्ध के बाद उन्होंने भारतीय सेना में कई अन्य योगदान भी दिए और अंतत: 2012 में 84 की उम्र में उन्होंने अपनी आंखें हमेशा के लिए मूंद ली थी.

Heroes of India Pakistan war 1965, Major Dayal 

जनरल हरबख्श सिंह

1965 के युद्ध के दौरान जब पाकिस्तानी सेना ने पंजाब के तरन तारन जिले में असल उत्तर, खेमकरण सेक्टर में जब अपने टैंक उतारे तो स्थित बहुत नाजुक थी. जिसको भारत की तरफ से कमान संभाल रहे जनरल गुरबख्श सिंह ने बखूबी कंट्रोल किया. उन्होंने अपने साथियों को ऐसी रणनीतियों से तैयार किया कि जल्द भारतीय सेना ने दुश्मन के 170 टैंक को तबाह करके अपने शार्य की गाथा को इतिहास में दर्ज करा दिया.
इस युद्ध में हमने अपने ढ़ेर सारे जाबांजों को खो दिया, लेकिन उनकी वीरता के चलते हम दुश्मन को यह संदेश देने में कामयाब रहे कि भारतीय सेना उसके हर एक वार का करारा जवाब देने में सक्षम है. वो बात और है कि पाकिस्तान की दुम इसके बाद भी सीधी नहीं हुई औऱ उसने 1971 और 1999 में फिर से युद्ध किया जिसका उसको माकूल जवाब दिया गया. 1965 की लड़ाई में भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का रोल भी बेहद महत्वपूर्ण रहा था, जिनके सटीक निर्णयों से दुश्मन को धूल चाटनी पड़ी थी.

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