ताशकंद समझौता और प्रधानमंत्री शास्त्री की मौत !

11 जनवरी 1966 का दिन भारतीय इतिहास के लिए एक काले दिन जैसा ही था. इस दिन भारत के प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री (Link in English) की मौत की खबर आई. यूं तो आधिकारिक तौर पर शास्त्री का निधन ताशकंद दौरे पर अचानक हार्ट अटैक आने से माना जाता है, लेकिन बाद में ऐसी कई सारी गुत्थियां सामने आईं, जिन्होंने उनकी मौत पर सवाल उठाए.
इन गुत्थियों में यहां तक कहा गया कि उनकी हत्या की गई थी. समय बीतता गया और शास्त्री जी की मौत एक रहस्य बनकर रह गई. तो आईये इस रहस्य से जुड़ी हर एक कड़ी को समझने की कोशिश करते हैं:

ताशकंद की जरुरत क्यों पड़ी?

1947 में मुंह की खाने के बाद भी पाकिस्तान ने सबक नहीं लिया. 1965 में उसने एक बार फिर से भारत पर हमला कर दिया था. पाकिस्तान ने इस बार हमले के लिए जो जगह चुनी उसका नाम था फाजिल्का. फाजिल्का पर पाकिस्तान ने तीनों ओर से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई, जिसमें ढ़ेरों लोग मारे गए. चूंकि यह हमला अचानक हुआ था, इसलिए हमारी सेना को मोर्चा संभालने में थोड़ी देरी अवश्य हुई, लेकिन जब भारत के जांबाजों ने मोर्चा संभाला तो फिर लाहौर तक घुसकर दुश्मनों को मारा.
इस लड़ाई में उस समय के प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री का रोल बेहद महत्वपूर्ण रहा था, जिनके सटीक निर्णयों से दुश्मन को घुटने टेकने पड़े थे. कहा जाता है कि भारतीय फौज लाहौर तक घुस गई थी. दुश्मन किस तरह कमजोर हो चुका था इसको इसी से समझा जा सकता है कि सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा था. सोवियत संघ ने ताशकंद में युद्धविराम की बातचीत की मेजबानी की, जहां भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने ताशकंद समझौते  पर हस्ताक्षर किए.
इस समझौते के अनुसार दोनों देशों को एक दूसरे से जीते हुए क्षेत्रों को वापस करना था. साथ ही भविष्य में सारी समस्याओं को मिलकर सुलझाने की सहमति थी.

क्या हुआ था उस रात ?

समझौते की रात शास्त्री जी ताशकंद में ही रुके. हर रोज की तरह वह रात्रि में अल्पाहार लेकर सो रहे थे. अचानक उन्हें खांसी शुरु हुई. वह अपने कमरे में अकेले थे. उनके कमरे में घंटी और टेलीफोन भी नहीं था, इसलिए वह खुद चलकर अपने सेक्रेटरी जगन्नाथ के कमरे में गए. उन्होंने दरवाजा खटखटाया तो जगन्नाथ अंदर से आया. उसने देखा कि शास्त्री जी दर्द से तड़प रहे थे.
जगन्नाथ ने तेजी से उन्हें संभालते हुए पानी पिलाया और फिर बिस्तर पर लिटाया. उन्हें थोड़ी राहत मिली तो उसने तत्काल डॉक्टर को आवाज लगाई. डॉक्टर शास्त्री जी के गेस्ट हाउस से काफी दूर था इसलिए उसे आने में देर हुई. तब तक शास्त्री जी की मौत हो चुकी थी.

शरीर नीला पड़ गया था!

अगले दिन यह खबर भारत को मिली तो सब आश्चर्यचकित थे. किसी को भरोसा नहीं हो रहा था शास्त्री जी इस तरह मर सकते हैं. उनके पार्थिव शरीर का भारत आने का इंतजार होने लगा. मृत शरीर भारत आते ही पूरे देश के लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए इकट्ठे हो गए. चूंकि शास्त्री जी की मौत के बाद उनका शरीर नीला पड़ गया था, इसलिए लोग बात करने लगे कि यह मौत सहज नहीं है. जरुर कहानी कुछ और है, जिसे छुपाया जा रहा था.
पूरा देश जानना चाहता था कि असल में हुआ क्या था. उन्हें आधिकारिक कहानी पर विश्वास नहीं हो रहा था. इसी बीच जब पता चला कि उनका पोस्टमार्टम तक नहीं हुआ तो लोग कहने लगे कि शास्त्री की स्वाभाविक मौत नहीं हुई, बल्कि उनकी हत्या की गई है.

परिजनों ने भी उठाए सवाल?

शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री (Link in English) ने जैसे ही उनका शव देखा, उन्होंने मानने से इंकार कर दिया कि शास्त्री की मौत हार्ट अटैक से हुई थी. उनका तर्क था कि अगर ऐसा है तो उनका शरीर नीला क्यों पड़ गया था! उन्होंने पोस्टमार्टम की भी मांग की थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने उसकी भी अनदेखी कर दी थी.
अपनी मां की तरह शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने भी सरकार से मांग की थी इसकी जांच कराई जाए, ताकि उनके पिता की मौत का रहस्य देश के लोगों के सामने आ सके. उनका कहना था कि उनके पिता की मृत्यु प्राकृतिक नहीं थी. उनके शव पर कई सारे नीले निशान थे, जो इशारा करते थे कि उन्हें जहर दिया गया था.

गवाहों के मारे जाने के मायने

शास्त्री जी के मौत के दौरान कई लोग वहां मौजूद थे, जिनकी गवाही इस रहस्य से पर्दा उठाने में कामयाब हो सकती थी. इसमें पहला नाम था डॉ. आरएन चुग का. माना जाता है कि वह नारायण कमेटी के सामने गवाही देने जा रहे थे, तभी एक ट्रक ने उन्हें कुचल दिया. इसी एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई थी.
दूसरा नाम था शास्त्री जी के नौकर रामनाथ का. अंतिम समय में वह उनके साथ था. डॉ. चुग की तरह वह भी गवाही देने के लिए अपने घर से निकला ही था कि उसे सामने से आ रही एक तेज रफ्तार गाड़ी ने उड़ा दिया. इस दुर्घटना में वह बुरी तरह घायल हो गया. उसका पैर काटना पड़ा था. उसके होश में आने का इंतजार किया जा रहा था, तभी डॉक्टर ने सूचना दी कि वह अपनी याददाश्त हमेशा के लिए खो चुका है. कुछ महीनों बाद उसकी भी मृत्यु हो गई.

इंदिरा गांधी का भी उछला नाम

शास्त्री की मृत्यु के बाद इसके पीछे कौन लोग हो सकते थे. इस सवाल के जवाब में रूस, पाकिस्तान, सीआईए और इंदिरा गांधी का नाम उछला.  चूंकि पाकिस्तान ने हाल ही में ताशकंद घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे, इसलिए उसके इसमें शामिल होने के चांसेस लोगों को कम लगे. दूसरी सुई रुस की तरफ थी, पर रुस के पास कोई खास वजह नहीं थी इस घटना को अंजाम देने के लिए. वह तो भारत का अच्छा सहयोगी था, इसलिए वह अपने ही देश में भारतीय नेता की हत्या की गलती नहीं करता.
शास्त्री की मौत से सबसे ज्यादा सियासी फायदा इंदिरा गांधी को होने वाला था. इसलिए वह कटघरे में खड़ी की गईं. अनुमान लगाया गया कि इंदिरा गांधी इसके पीछे हो सकती थीं, क्योंकि शास्त्री जी की मृत्यु से उनको सीधा लाभ मिल रहा था. शास्त्री के रहने पर उन्हें पार्टी के अंदर वह तवज्जो कभी नहीं मिली, जिसे वह चाहती थीं. कहा गया कि शास्त्री को रास्ते से हटाकर वह पार्टी के अंदर बिना किसी विरोध और गतिरोध के देश का नेतृत्व करना चाहती थीं.
हालांकि, इसी कड़ी में कुछ वक्त बाद सीआईए के निदेशक, रॉबर्ट क्रॉले के साथ एक साक्षात्कार ने नया खुलासा कर दिया. यह चौकाने वाला था. इस साक्षात्कार में, क्रॉवे ने पत्रकार ग्रेगरी डगलस को बताया कि सीआईए ने जनवरी 1966 में शास्त्री और डॉ. होमी भाभा को मारा था.

सरकार की नियत पर सवाल

शास्त्री की मौत पर जांच के नाम पर राज नारायण ने एक इन्क्वायरी करवायी थी, जो बेनतीजा रही. दिलचस्प बात तो यह है कि इण्डियन पार्लियामेण्ट्री लाइब्रेरी के पास इस जांच का कोई उपर्युक्त दस्तावेज नहीं है. यही नहीं मशहूर लेखक अनुज धर ने शास्त्री जी की मौत के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए आरटीआई भी फाइल की, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से इसका जो जवाब आया वह हैरान कर देने वाला था. जवाब में लिखा गया कि उनके पास शास्त्री की मौत से जुड़ा एक दस्तावेज है, पर वह उसे सार्वजनिक नहीं कर सकते. उनका तर्क था कि ऐसा करने पर उनके विदेशों से रिश्ते बिगड़ जायेंगे.
इसी कड़ी में कुछ वक्त पहले फेमस लेखक व पत्रकार कुलदीप  नैयर ने भी शास्त्री की मौत से जुड़े कई पहलुओं को अपनी किताब में रेखांकित किया था. बताते चलें कि वह ताशकंद की इस यात्रा में शास्त्री जी के साथ गये थे.
साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने सुभाष चंद्र बोस की मौत से संबंधित फाइल सार्वजनिक की, तो शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने भी भारत सरकार से इस रहस्य पर से पर्दा हटाने की मांग की. पर अफसोस है कि इस दिशा में कोई ठोस जांच के आदेश न तब दिये गये थे और न अब कहीं दिखाई देते हैं.

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