हॉलीवुड की फ़िल्मों में अक्सर आपने कुछ अभिनेताओं की जर्सी पर ‘सीआईए’ लिखा देखा होगा. इसका मतलब पूछने पर एक पल में आप इसका फुल फार्म भी बता देते होंगे. पर क्या आप जानते हैं कि असल में सीआईए है क्या? भारत में जिस तरह से रॉ एक खूफिया एजेंसी है, उस तरह ही सीआईए अमेरिका की एक खुफिया एजेंसी है. इसका नाम दुनिया की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसियों में शुमार है. तो आईये जानते हैं इससे जुडे़ कुछ रोचक पहलू:
इस तरह हुआ ‘सीआईए’ का गठन
दूसरे विश्व युद्ध का समय था. चारों तरफ अफरा-तफरी मची हुई थी. अमेरिका को समझ नहीं आ रहा था कि इस मुश्किल घड़ी में किस तरह से पार पाया जाए. दुश्मन तेजी से उस पर हावी होता चला जा रहा था. उनके पास एक ही विकल्प था कि अगर उन्हें किसी तरह से दुश्मन की गतिविधियों का पता चल जाये तो वह उसको नेस्तानाबूत कर दे. हालांकि, उनके पास एफबीआई नामक एक एजेंसी थी, जो उनके लिए इस तरह के मिशन को देखती थी. पर इस युद्ध के दौरान वह भी फेल होती दिखी. जैसे-तैसे यह युद्ध ख़त्म हुआ, लेकिन इसमें अमेरिका का बहुत बड़ा नुकसान हुआ था.
इस युद्ध में अमेरिका ने अपने कई सैनिक गँवा दिए थे. वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके पास दुश्मन की पर्याप्त जानकारी नहीं थी. उन्होंने युद्ध से सीखते हुए देरी नहीं की और सीआईए नामक खुफिया एजेंसी का गठन कर दिया. 1947 में इसको मूल स्वरुप दिया गया.
आसान नहीं इसका हिस्सा बनना
सीआईए का सदस्य बनना आसान नहीं माना जाता. आम लोग इसका हिस्सा नहीं बन सकते. हालांकि अमेरिका में कुछ कॉलेज हैं, जिनमें ‘सीआईए’ में शामिल होने का प्रशिक्षण दिया जाता है. इसके बाद बकायदा परीक्षा की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. यहां प्रतिभागियों को कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग के दौरान मानसिक कसरत पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है. महीनों पसीना बहाने के बाद कहीं जाकर किसी को सफलता मिलती है.
‘सीआईए’ का काम करने का तरीका बाकी देशों की खुफिया एजेंसियों जैसा ही है. इसमें कोई खास अंतर देखने को नहीं मिलता. इसके जासूस अलग-अलग देशों में पर्यटक के रुप में मौजूद रहते हैं. यह जासूस घूमते फिरते अपना काम करते रहते हैं. यह किसी को भी अपने कामों की भनक तक नहीं लगने देते. मूलत: इसका गठन ही देश से बाहर रहकर देशी विरोधी जानकारियों को एकत्र करना है. यह बिना किसी खास वजह के देश के अंदर अपनी सेवाएं नहीं देते हैं.
यह हर काम अपने राष्ट्रपति को भरोसे में लेकर करते हैं. यह एजेंसी एक खास किस्म ‘ह्युमिंट‘ की शैली से काम करने के लिए जानी जाती है. इस विशेष शैली के अनुसार यह तकनीक की तुलना में अपने जासूसों पर ज्यादा भरोसा करती है. जबकि, ज्यादातर दूसरी खूफिया एजेंसियां तकनीक पर ज्यादा काम करती हैं.
‘सीआईए’ पर खर्च होते हैं अरबों डॉलर
सीआईए के पास दूसरों देशों से खुफिया जानकारी जुटाने के अलावा आतंकवाद, परमाणु हथियार और देश के बड़े नेताओं की सुरक्षा का भी जिम्मा होता है. मौजूदा समय में ‘सीआईए’ के सामने आतंकवाद एक बड़ी चुनौती है. वह सालों से इससे लड़ रही है. कभी अलकायदा, कभी अफ़ग़ान तो कभी सीरिया से इनका टकराव होता रहता है. पेरिस और मैन्चेस्टर में हुए आईएसआईएस के हमलों ने सीआईए को पहले से ज्यादा अलर्ट किया है.
अब जिम्मेदारियां ज्यादा तो खर्च भी ज्यादा! वैसे तो सीआईए को मिलने वाले पैसे की जानकारी गुप्त रखी जाती है पर माना जाता है कि 2017 में इसके लिए अमेरिकी सरकार ने 12.82 अरब डॉलर का बजट दिया था. किसी भी देश की सुरक्षा सरकार की पहली प्राथमिकता होती है. शायद इसलिए ही अमेरिका इसमें किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं बरतना चाहता. फिर चाहे इसके लिए कितना भी पैसा क्यों न बहाना पड़े.
सोशल मीडिया पर होती है बारीक नज़र
आज के दौर में जब लोग इन्टरनेट के आदी हो चुके हैं. खासकर सोशल साइट्स के. ऐसे में सीआईए की इन पर खास नज़र होती है. कई बार देखा गया है कि आंतकवाद से जुड़े लोग इंटरनेट की मदद से अपनी जगह-जगह पर बैठे-बैठे बड़ी घटना को अंजाम दे देते हैं. इसलिए सीआईए सक्रिय रहता है.
माना जाता है कि वह दिन में लगभग 5 करोड़ ट्विट पढ़ती है. उन्हें जिस भी ट्वीट पर शक होता है, वह उसके हर एक शब्द का हर संभव मतलब समझने की कोशिश करते हैं. बाद में अगर कोई शक के घेरे में आता है तो उसकी गुप्त तरीके से तफ्तीश करते हैं. सिर्फ ट्विटर ही नहीं यह अन्य सभी सोशल मीडिया वेबसाइट पर अपने दुश्मनों को ढूंढते हैं.
ओसामा के खात्मे में बड़ी भूमिका
ओसामा बिन लादेन काफी लम्बे समय से अमेरिका के लिए मुसीबत बना रहा था. 9/11 के हमले के बाद तो अमेरिका किसी भी हालत में उसे खत्म करना चाहती थी. ‘सीआईए’ को इसकी जिम्मेदारी दी गई और उसने उसे ढूंढना शुरु कर दिया. आखिरकार कई सालों बाद 2011 को उसे अपने इसी मिशन में सफलता मिली. 2001 से लेकर 2011 तक ओसामा से जुड़ी हर एक जानकारी को ‘सीआईए’ ने जुटाकर सरकार को सुपुर्द कर दिया था. तय किया गया कि ओसामा को खत्म किया जाये. किसी प्रकार की कोई चूक न हो जाये, इसलिए गुप्त रणनीति बनाई गई थी.
रणनीति के तहत ‘नेवी सील’ और ‘सीआईए’ की एक टीम को इस मिशन का जिम्मा दिया गया. रात के अंधेरे में इस टीम के लोग पाकिस्तान गए और वहां ओसामा को मार गिराया. इस मिशन की खास बात यह थी यह इतनी खामोशी से पूरा किया गया कि किसी को कानो कान खबर तक नहीं हुई. ओसामा का खात्मा ‘सीआईए’ की एक बड़ी जीत मानी जाती है.
‘सीआईए’ अब अमेरिका की रीढ़ बन चुकी है. कहीं न कहीं इसका श्रेय ‘सीआईए’ को जाता ही है कि दुश्मन अमेरिका में नापाक हरकत करने के पहले एक बार सोचता जरुर है. खासकर लादेन के खात्मे के बाद! बाकी देश ‘सीआईए’ की कार्यप्रणाली से बहुत कुछ सीख सकते हैं, इस बात में दो राय नहीं.
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