Munda Revolt

मुण्डा विद्रोह 

जनजातीय विद्रोह में सबसे संगठित एवं विस्तृत विद्रोह १८९५ ई. से १९०१ ई. के बीच मुण्डा विद्रोह था जिसका नेतृत्व बिरसा मुण्डा ने किया था। बिरसा मुण्डा का जन्म १८७५ ई. में रांची के तमार थाना के अन्तर्गत चालकन्द गाँव में हुआ था। उसने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी। बिरसा मुण्डा ने मुण्डा विद्रोह पारम्परिक भू-व्यवस्था का जमींदारी व्यवस्था में परिवर्तन हेतु धार्मिक-राजनीतिक आन्दोलन का स्वरूप प्रदान किया। बिरसा मुण्डा को उल्गुहान (महान विद्रोही) कहा गया है। बिरसा मुण्डा ने पारम्परिक भू-व्यवस्था का जमींदारी व्यवस्था को धार्मिक एवं राजनीतिक आन्दोलन का रूप प्रदान किया। बिरसा मुण्डा ने अपनी सुधारवादी प्रक्रिया को सामाजिक जीवन में एक आदर्श प्रस्तुत किया। उसने नैतिक आचरण की शुद्धता, आत्म-सुधार और एकेश्‍वरवाद का उपदेश दिया। उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व को अस्वीकारते हुए अपने अनुयायियों को सरकार को लगान न देने का आदेश दिया। १९०० ई. बिरसा मुण्डा को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे जेल में डाल दिया जहाँ हैजा बीमारी से उनकी मृत्यु हो गयी।

सफाहोड आन्दोलन

इस आन्दोलन का आरम्भ १८७० ई. में हो चुका था। इसका प्रणेता लाल हेम्ब्रन था। इसका स्वरूप धार्मिक था, लेकिन जब यह आन्दोलन भगीरथ मांझी के अधीन आया तब आन्दोलन का धार्मिक रूप बदलकर राजनीतिक हो गया। ब्रिटिश सत्ता से संघर्ष के लिए आलम्बन एवं चरित्र का निर्माण करना तथा धार्मिक भावना को प्रज्ज्वलित करना ही इसका उद्देश्य था। आन्दोलनकारी राम नाम का जाप करते थे फलतः ब्रिटिश अधिकारियों ने राम नाम जाप पर पाबन्दी लगा दी थी। आन्दोलन के नेता लाल हैम्ब्रन तथा पैका मुर्यू को डाकू घोषित कर दिया गया। लाल हेम्ब्रन ने नेता सुभाषचन्द्र बोस की तरह ही संथाल परगना में ही हिन्द फौज के अनुरूप देशी द्वारक दल का गठन किया। उसने १९४५ ई. में महात्मा गाँधी के आदेश पर आत्मसमर्पण कर दिया।

ताना भगत आन्दोलन

ताना भगत का जन्म १९१४ ई. में गुमला जिला के बिशनुपुर प्रखण्ड (छोटा नागपुर) के एक ग्राम से हुआ था। इसका नेतृत्व आदिवासियों में रहने वाले धर्माचार्यों ने किया था। यह संस्कृतीकरण आन्दोलन था। इन जनजातियों (आदिवासी) के मध्य गाँधीवादी कार्यकर्ताओं ने अपने रचनात्मक कार्यों से प्रवेश प्राप्त कर लिया था। जात्रा भगत इस आन्दोलन का प्रमुख नेता था। यह नया धार्मिक आन्दोलन उरॉव जनजाति द्वारा प्रारम्भ हुआ था। ताना भगत आन्दोलन बिहार जनजातियों का राष्ट्रीय आन्दोलन था। १९२० के दशक में ताना भगत आन्दोलनकारियों ने कांग्रेस में रहकर सत्याग्रहों व प्रदर्शनों में भाग लिया था तथा राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी की थी। इस आन्दोलन में खादी का प्रचार एवं प्रसार हुआ। इसाई धर्म प्रचारकों का विरोध किया गया। इस आन्दोलन की मुख्य माँगें थीं- स्वशासन का अधिकार, लगान का बहिष्कार एवं मनुष्यों में समता। जब असहयोग आन्दोलन कमजोर पड़ गया तब इन आन्दोलनकारियों ने स्थानीय मुद्दों को उठाकर आन्दोलन किया।

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